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ग़ज़ल
उन की बाँहों के हल्क़े में इश्क़ बना है पीर-ए-तरीक़
अब ऐसे में बताओ यारो किस जा कुफ़्र किधर ईमान
इब्न-ए-सफ़ी
ग़ज़ल
जिन की फ़ितरत ना-शनास-ए-ज़ौक़-ए-मोहकम है 'उरूज'
मैं उन्हें ये कैसे समझाऊँ वफ़ा क्या चीज़ है
उरूज ज़ैदी बदायूनी
ग़ज़ल
मता-ए-अज़्म-ए-मोहकम ही का इस को मो'जिज़ा कहिए
कि मंज़िल बन गई ख़ुद रहगुज़र आहिस्ता आहिस्ता
अब्दुल मन्नान तरज़ी
ग़ज़ल
रोज़-ओ-शब अपने गुज़र जाना दयार-ए-ग़ैर में
दास्तान-ए-अज़्म-ए-मोहकम के सिवा कुछ भी नहीं