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ग़ज़ल
गर एक ग़ज़ब हो तो कोई उस को उठावे
रफ़्तार ग़ज़ब है तिरी गुफ़्तार ग़ज़ब है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
करे मेहनत कोई लज़्ज़त उठावे यार से कोई
कहो अपने तईं ज़ाएअ' न करता कोहकन क्यूँ कर
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
ग़ज़ल
उठावें क्यूँ न नकतोड़े कि हम चाकर हैं उल्फ़त के
वगरना तुम से आलम में हैं बहतेरे मियाँ साहिब