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ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
ख़्वाब पैरों तले शानों पे है ज़िम्मे-दारी
हम को उड़ना भी है पंखों को निकलना भी नहीं
दख़लन भोपाली
ग़ज़ल
जता कर ख़ाक का उड़ना दिखा कर गर्द का चक्कर
वहीं हम ले चले उस गुल-बदन को घेर आँधी में
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मिरी फ़ितरत अजब है आज तक मैं भी नहीं समझा
वो जिन के पर नहीं होते उन्हें उड़ना सिखाता हूँ
अजीत सिंह हसरत
ग़ज़ल
वक़्त के पंछी को उड़ना था बिल-आख़िर उड़ गया
आड़ी-तिरछी कुछ लकीरें हैं फ़क़त अब हाथ में
बशीर मुंज़िर
ग़ज़ल
मुशाहिद को लगा आसान है तूफ़ान में उड़ना
ज़मीं से अर्श तक दूभर परिंदे से ज़रा पूछो
हिमांशु पांडेय
ग़ज़ल
वो जो था ख़ुशबू की मानिंद उड़ना जिस का शौक़ था
बेबसी देखो उसे अशआर में रहना पड़ा