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ग़ज़ल
रुख़-ए-रौशन से नक़ाब अपने उलट देखो तुम
मेहर-ओ-मह नज़रों से यारों की उतर जाएँगे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
गए होश तेरे ज़ाहिद जो वो चश्म-ए-मस्त देखी
मुझे क्या उलट न देते जो न बादा-ख़्वार होता
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
मुझे लिखने वाला लिखे भी क्या मुझे पढ़ने वाला पढ़े भी क्या
जहाँ मेरा नाम लिखा गया वहीं रौशनाई उलट गई