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ग़ज़ल
सभी से ऊब कर यूँ तो चले आए हो ख़ल्वत में
मगर ख़ुद से भी उकताने में कितनी देर लगती है
मनीश शुक्ला
ग़ज़ल
शैख़-ओ-हरम के झगड़ों से तो दिल कुछ इतना ऊब गया
दैर-ओ-हरम को छोड़ के अब तो आ बैठे मयख़ाने लोग