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ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
शिकस्त-ए-दिल का बाक़ी हम ने ग़ुर्बत में असर रखा
लिखा अहल-ए-वतन को ख़त तो इक गोशा कतर रक्खा
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले