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ग़ज़ल
बाग़बाँ गुलचीं को चाहे जो कहे हम को तो फूल
शाख़ से बढ़ कर कफ़-ए-दिलदार पर अच्छा लगा
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
होशियारी से हो 'परवीं' चमन-ए-हुस्न की सैर
दाम और दाना हैं दोनों रुख़-ए-दिलदार के पास
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
सुर्ख़ी के सबब ख़ूब खिला है गुल-ए-लाला
आरिज़ में लबों में कफ़-ए-दस्त ओ कफ़-ए-पा में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
'शान' बे-सम्त न कर दे तुम्हें सहरा-ए-हयात
ज़ेहन में उन के नुक़ूश-ए-कफ़-ए-पा रहने दो
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
हिना तेरे कफ़-ए-पा को न उस शोख़ी से सहलाती
ये आँखें क्यूँ लहू रोतीं उन्हों की नींद क्यूँ जाती
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
सुब्ह कू-ए-यार में बाद-ए-सबा पकड़ी गई
या'नी ग़ीबत में गुलों की मुब्तला पकड़ी गई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
देखने वाले ये कहते हैं किताब-ए-दहर में
तू सरापा हुस्न का नक़्शा है मैं तस्वीर-ए-इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
कहाँ सेहन-ए-चमन में बात कू-ए-सर-फ़रोशाँ की
इधर से सादा-रू निकले उधर से लाला-रंग आए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
फ़रियाद कीजे कूचा-ए-दिलदार की तरफ़
बुलबुल पुकारती रही गुलज़ार की तरफ़