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ग़ज़ल
थोड़ी देर में थक जाएँगे नील-कमल सी रेन के पाँव
थोड़ी देर में थम जाएगा राग नदी के झाँझन का
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
भँवर काला किया है भेस तेरे मुख कमल के तईं
वले इस भँवरे थे तेरे पीरत में हुईं कामिल में
क़ुली क़ुतुब शाह
ग़ज़ल
कमाल है ये अब उन्सियत के तमाम पहलू बदल गए हैं
जो मरहला था मसर्रतों का अब इश्क़ का वो मक़ाम दुख है
कमल कटारिया करन
ग़ज़ल
जैसे काले कीचड़ में इक सुर्ख़ कमल हो जल्वा-नुमा
ऐसे दिखाई देते हो हम को तो अग़्यार के बीच