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ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
थामें उस बुत की कलाई और कहें इस को जुनूँ
चूम लें मुँह और इसे अंदाज़-ए-रिंदाना कहें
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
तिरे बीमार-ए-ग़म की अब तो नब्ज़ें भी नहीं मिलतीं
कफ़-ए-अफ़सोस मलते हैं कलाई देखने वाले
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
हाथ मलवाती हैं हूरों को तुम्हारी चूड़ियाँ
प्यारी प्यारी है कलाई प्यारी प्यारी चूड़ियाँ
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
ये किस का दिल दुखा कर अपने गाँव से मैं निकला हूँ
गली हर मोड़ पर मेरी कलाई थाम लेती है
ताैफ़ीक़ साग़र
ग़ज़ल
मिस्ल-ए-शाख़-ए-गुल लचकती है कलाई बार बार
गजरे फूलों के हैं या कंगन तुम्हारे हाथ में
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
ये मुझ से सख़्त-जाँ पर शौक़ ख़ंजर-आज़माई का
ख़ुदा-हाफ़िज़ मिरे क़ातिल तिरी नाज़ुक कलाई का