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ग़ज़ल
तुम्हारे हुस्न का चर्चा करूँगा परियों में
अगर कभी सफ़र-ए-कोह-ए-क़ाफ़ मैं ने किया
शकील इबन-ए-शरफ़
ग़ज़ल
राह-ए-हक़ में जो हर इक चीज़ लुटाता है 'कशिश'
उस की झोली को ख़ुदा ग़ैब से भर देता है
कशिश संदेलवी
ग़ज़ल
निधि गुप्ता कशिश
ग़ज़ल
ऐ सख़ियो ऐ ख़ुश-नज़रो यक गूना करम ख़ैरात करो
नारा-ज़नाँ कुछ लोग फिरें हैं सुब्ह से शहर-ए-निगार के बीच
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
देखने वाले ये कहते हैं किताब-ए-दहर में
तू सरापा हुस्न का नक़्शा है मैं तस्वीर-ए-इश्क़