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ग़ज़ल
या मुझे क़ुव्वत-ए-तस्ख़ीर-ए-दो-ए-आलम हो अता
वर्ना मामूरा-ए-हस्ती से मिटा दे मुझ को
वासिल उस्मानी
ग़ज़ल
कभी तो चाहिए फ़िक्र-ए-नज़ाफ़त-ए-बातिन
रिया के सैद ये ज़ाहिर की शुस्त-ओ-शू क्या है
सयय्द महमूद हसन क़ैसर अमरोही
ग़ज़ल
वो फ़क़ीह-ए-कू-ए-बातिन है अदू-ए-दीन-ओ-मिल्लत
किसी ख़ौफ़-ए-दुनियवी से जो तराश दे फ़साना