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ग़ज़ल
याद है अब तक तुझ से बिछड़ने की वो अँधेरी शाम मुझे
तू ख़ामोश खड़ा था लेकिन बातें करता था काजल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
ब़ाँबी नागिन, छाया आँगन, घुंघरू छन-छन, आशा मन
आँखें काजल, पर्बत बादल, वो ज़ुल्फ़ें और ये बाज़ू
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
खिंची कंघी गुँधी चोटी जमी पट्टी लगा काजल
कमाँ-अबरू नज़र जादू निगह हर इक दुलारी है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
इतना गहरा रंग कहाँ था रात के मैले आँचल का
ये किस ने रो रो के गगन में अपना काजल घोल दिया
शकेब जलाली
ग़ज़ल
तुम्हारा काम इतना है फ़क़त काजल लगा लेना
तुम्हारी आँख की ख़ातिर नज़ारे मैं बनाऊँगा
ख़ालिद नदीम शानी
ग़ज़ल
एक तो नैनाँ कजरारे और तिस पर डूबे काजल में
बिजली की बढ़ जाए चमक कुछ और भी गहरे बादल में