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ग़ज़ल
किस तरह तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ का मैं सोचूँ 'ताबिश'
हाथ को काटना पड़ता है छुड़ाने के लिए
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
जो दुख की फ़स्ल बोई है तो अब दुख काटना होगा
मुकाफ़ात-ए-अमल समझे इशारा हो गया होता