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ग़ज़ल
जहाँ वो ज़ुल्फ़-ए-बरहम कारगर महसूस होती है
वहाँ ढलती हुई हर दोपहर महसूस होती है
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
सुना करते थे आज आँखों से देखें देखने वाले
निगाह-ए-'यास' का संगीं-दिलों पर कारगर होना
यगाना चंगेज़ी
ग़ज़ल
कार-गर इश्क़ में अब तक ग़म-ए-पिन्हाँ न हुआ
मैं अभी बे-ख़बर-ए-कुल्फ़त-ए-हिज्राँ न हुआ