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ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
रात की चादर तह होने तक धूप का जादू खुलने तक
दरवाज़े के बंद किवाड़ों से इक बात छुपानी है
अम्बरीन सलाहुद्दीन
ग़ज़ल
ये तअ'ल्लुक़ के तक़ाज़ों को भी खा जाता है
शक मोहब्बत की किताबों को भी खा जाता है