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ग़ज़ल
बे-अमल लोगों से जब पूछो तो कहते हैं की 'शान'
हम अज़ल से क़िस्मत-ए-नाकाम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
रुख़-ए-नुमू को शिकायत फ़क़त ख़िज़ाँ से नहीं
बहार में भी हुई किश्त-ए-जिस्म-ओ-जाँ बर्बाद
सहर अंसारी
ग़ज़ल
उधर बर्क़-ए-निगह है सब्र के ख़िर्मन की आतिश-ज़न
इधर किश्त-ए-उम्मीद-ओ-यास अब तक सैर-ए-हासिल है
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
गराँ ज़मीन-ए-किश्त-ए-ग़म-ए-जिगर को नक़्द की अदा
मसर्रतों का वहम था उधार कर लिया गया
फ़रहत नादिर रिज़्वी
ग़ज़ल
क़दम-ए-ख़ुश-बदनाँ शो'बदा-गर है कि नहीं
ये ज़मीं-लाला-रुख़-ओ-किश्त-ए-गुहर है कि नहीं