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ग़ज़ल
न पहुँचे छूट कर कुंज-ए-क़फ़स से हम नशेमन तक
पर-ए-पर्वाज़ ने यारी न की दीवार-ए-गुलशन तक
अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी
ग़ज़ल
उन से बहार ओ बाग़ की बातें कर के जी को दुखाना क्या
जिन को एक ज़माना गुज़रा कुंज-ए-क़फ़स में राम हुए