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ग़ज़ल
जिन की जीभ के कुंडल में था नीश-ए-अक़रब का पैवंद
लिक्खा है उन बद-सुखनों की क़ौम पे अज़दर बरसे थे
मजीद अमजद
ग़ज़ल
कान में कुंडल कड़ा हाथ में लम्बे बाल घूँघरूं वाले
तेरे तन के चार छपेरे किस जोगन का घेरा जोगी
बिमल कृष्ण अश्क
ग़ज़ल
चिड़ियों की चहकार में गूँजे राधा मोहन अली अली
मुर्ग़े की आवाज़ से बजती घर की कुंडी जैसी माँ
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
जहान भर की तमाम आँखें निचोड़ कर जितना नम बनेगा
ये कुल मिला कर भी हिज्र की रात मेरे गिर्ये से कम बनेगा
उमैर नजमी
ग़ज़ल
वो दाना-ए-सुबुल ख़त्मुर-रुसुल मौला-ए-कुल जिस ने
ग़ुबार-ए-राह को बख़्शा फ़रोग़-ए-वादी-ए-सीना
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
रूह-ए-कुल से सब रूहों पर वस्ल की हसरत तारी है
इक सर-ए-हिकमत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में