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ग़ज़ल
हमारा ख़्वाब कुछ कुछ और है ता'बीर आँखों में
लिए फिरते हैं शायद हम ग़लत तस्वीर आँखों में
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
अदा-ओ-नाज़ में कुछ कुछ जो होश उस ने सँभाला है
तो अपने हुस्न का क्या क्या दिलों में शोर डाला है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
अब इस को इल्तिफ़ात कहूँ मैं कि बे-रुख़ी
कुछ कुछ हैं मेहरबाँ से भी कुछ कुछ ख़फ़ा से भी
उमर अंसारी
ग़ज़ल
हैं मेरी नज़रें भी आज कुछ कुछ झुकी झुकी सी
तुम्हारा भी रंग-ए-रुख़ है कुछ कुछ उड़ा उड़ा सा