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ग़ज़ल
मुद्रिका-ए-बशर है क्या पाए जो उस की कुनह को
चाहा जो उस ने सो किया कौन कहे कि क्या किया
शाह नसीर
ग़ज़ल
कुनह ज़ात-ए-हक़ को क्या पावे कोई 'हातिम' कभू
सब के आजिज़ हैं यहाँ वहम-ओ-गुमाँ फ़हम ओ क़यास
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
गिर्या-कुनाँ की फ़र्द में अपना नहीं है नाम
हम गिर्या-कुन अज़ल के हैं गिर्या किए बग़ैर