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ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
गिर गया अपनी निगाहों में ही अपना सब वक़ार
जब सर-ए-बाज़ार खोटे को खरा हम ने कहा
राजेन्द्र नाथ रहबर
ग़ज़ल
मैं खरा उतरा नहीं तेरे तक़ाज़े पर कभी
ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी तुझ से हूँ शर्मिंदा बहुत