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ग़ज़ल
बड़े शौक़ से मिरा घर जला कोई आँच तुझ पे न आएगी
ये ज़बाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी का ग़ुलाम है
बशीर बद्र
ग़ज़ल
क़ीमत में दीद-ए-रुख़ की हम नक़्द-ए-जाँ लगाते
बाज़ार-ए-नाज़ लगता दिल की ख़रीद होती
ग़ुलाम भीक नैरंग
ग़ज़ल
बस एक सिक्के से धरती ख़रीद सकता हूँ
मैं अपने ख़्वाब में कुछ भी ख़रीद सकता हूँ
अश्वनी मित्तल 'ऐश'
ग़ज़ल
वहशत में पैरहन की उड़ीं धज्जियाँ तमाम
तन पर क़बा-ए-दाग़ है सो नौ-ख़रीद है