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ग़ज़ल
ख़राब कोशक-ए-सुल्तान ओ ख़ानक़ाह-ए-फ़क़ीर
फ़ुग़ाँ कि तख़्त ओ मुसल्ला कमाल-ए-रज़्ज़ाक़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कभी मय-कदा कभी बुत-कदा कभी का'बा तो कभी ख़ानक़ाह
ये तिरी तलब का जुनून था मुझे कब किसी से लगाव था
शमीम अब्बास
ग़ज़ल
सलीम कौसर
ग़ज़ल
कैसे हैं ख़ानक़ाह में अर्बाब-ए-ख़ानक़ाह
किस हाल में है पीर-ए-मुग़ाँ देखते चलें
मख़दूम मुहिउद्दीन
ग़ज़ल
ज़ाहिद हज़ार हैफ़ कि पहुँचा न कोई फ़ैज़
रिंदों के मय-कदे को तिरी ख़ानक़ाह से
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
गुज़रे जो सू-ए-ख़ानक़ाह वाँ भी बशक्ल-ए-जानमाज़
अहल-ए-सलाह-ओ-ज़ुहद को फ़र्श किया बिछा दिया