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ग़ज़ल
रोज़-ए-अव्वल से असीर ऐ दिल-ए-नाशाद हैं हम
परवरिश-याफ़्ता-ए-ख़ाना-ए-सय्याद हैं हम
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
क्या गुल-अंदाम कोई इस में नहाया था जो आज
रग-ए-गुल से हैं मोअत्तर ख़स-ओ-ख़ार-ए-दरिया
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
जज़्ब-ए-दिल-ए-मजनूँ ने किया काम जो अपना
नाक़ा न रुका ख़ार-ए-बयाबाँ से उलझ कर
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
या रब न हिन्द ही में ये माटी ख़राब हो
जा कर नजफ़ में ख़ाक-ए-दर-ए-बू-तुराब हो
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ग़ज़ल
नहीं मय-ख़ाना-ए-आलम में मुझ सा मस्त-ओ-बे-ख़ुद है
कि शोर-ए-हश्र को भी क़ुलक़ुल-ए-मीना समझता हूँ
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
ये हम से पूछते हो रंज-ए-इम्तिहाँ क्या है
तुम्हीं कहो सिला-ए-ख़ून-ए-कुश्तगाँ क्या है
अख़्तर सईद ख़ान
ग़ज़ल
ये अंधेरा जो अयाँ सुब्ह की तनवीर में है
कुछ कमी ख़ून-ए-जिगर की अभी तस्वीर में है