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ग़ज़ल
उस जान-ए-दोस्ती का ख़ुलूस-ए-निहाँ न पूछ
जिस का सितम भी ग़ैरत-ए-सद-इल्तिफ़ात है
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
मैं चुप रहूँ तो गोया रंज-ओ-ग़म-ए-निहाँ हूँ
बोलूँ तो सर से पा तक हसरत की दास्ताँ हूँ
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
तिरे ख़ुलूस-ए-निहाँ का तो आह क्या कहना
सुलूक उचटटे भी दिल में समाए हैं क्या क्या
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
बता देते हैं अहवाल-ए-दिल-ओ-राज़-ए-निहाँ चेहरे
ख़मोशी हो लबों पर लाख तेवर बात करते हैं
ज़हीर अहमद ज़हीर
ग़ज़ल
किस से हाल-ए-दिल कहें किस को सुनाएँ हाल-ए-ज़ार
चारा-साज़-ए-दर्द-ए-दिल-सोज़-ए-निहाँ कोई नहीं
बिसमिल आज़मी
ग़ज़ल
कैसी चमक कहाँ की खटक उफ़ रे बे-हिसी
हैं मस्त ज़ौक़-ए-लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-निहाँ से हम