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ग़ज़ल
नुमू का जोश कुछ नज़्ज़ारा-फ़रमा हो तो हो वर्ना
बहार अब के बरस ख़ुद पाइमाल-ए-ख़ुश्क-साली है
गौहर होशियारपुरी
ग़ज़ल
क्या बहार-ओ-ख़ुश्क-साली क्या 'उरूज और क्या ज़वाल
कल ज़मीन-ओ-आसमाँ मुझ को बहम होने को है
अब्दुल्लाह साक़िब
ग़ज़ल
रगों में ख़ून की हिद्दत से ख़ुश्क-साली है
मैं उस रवानी को रस्म-ए-जुमूद सौंपता हूँ
काज़िम हुसैन काज़िम
ग़ज़ल
हम अब के ख़ुश्क-साली पर क़नाअत कर नहीं सकते
लहू की फ़स्ल से धरती हुई बंजर भुलावा है
सफ़दर इमाम क़ादरी
ग़ज़ल
चमन में ख़ुश्क-साली पर है ख़ुश सय्याद कि अब ख़ुद
परिंदे पेट की ख़ातिर असीर-ए-दाम होते हैं