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ग़ज़ल
फ़ुग़ाँ को ज़मज़मा कर दे जुनूँ को शांत करे
ये रंग भी तो मिरे यार-ए-ख़ुश-ख़िसाल में है
काविश अब्बासी
ग़ज़ल
हम अपने इश्क़ की बाबत कुछ एहतिमाल में हैं
कि तेरी ख़ूबियाँ इक और ख़ुश-ख़िसाल में हैं
शहराम सर्मदी
ग़ज़ल
किसी उफ़ुक़ पे तो हो इत्तिसाल-ए-ज़ुल्मत-ओ-नूर
कि हम ख़राब भी हों और वो ख़ुश-ख़िसाल भी आए
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
न अब वो ख़ुश-नज़री है न ख़ुश-ख़िसाली है
ये क्या हुआ मुझे ये वज़्अ क्यूँ बना ली है