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ग़ज़ल
कोई रोए या हँसे 'पर्वाज़' मुझ को ग़म नहीं
मैं तो ज़िंदा हूँ मिरा एहसास-ए-दिल ज़िंदा नहीं
नसीर प्रवाज़
ग़ज़ल
मैं ख़ुद ही दर्द से दामन बचा के गुज़रा हूँ
वगरना ज़ीस्त को परवाज़-ए-ग़म ज़रूर मिले
नसीर प्रवाज़
ग़ज़ल
जिस्म-ए-क़िर्तास पे इक बोझ लगें जो 'पर्वाज़'
दस्तख़त के वो अंगूठे नहीं अच्छे लगते
मुजीब प्रवाज़
ग़ज़ल
यूँ भी राह-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र में जीवन भर भटका 'पर्वाज़'
अपनी गुमराही का ये ग़म आख़िर कितना सोचूँगा
नसीर प्रवाज़
ग़ज़ल
हम तो तुझ को भुला चुके हैं भूल न लेकिन तू हम को
प्यासी है 'पर्वाज़' ये दुनिया रहमत बरसा पानी दे
नसीर प्रवाज़
ग़ज़ल
बैठी है बारूद के ऊपर कब से ये दुनिया 'पर्वाज़'
लगता है मेरे बच्चों को डर और दहशत जीना है
नसीर प्रवाज़
ग़ज़ल
शब-ए-फ़िराक़ के मारे नहीं हो तुम पर्वाज़
तुम्हारी फ़िक्र पे क्यूँ जम गई है तन्हाई