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ग़ज़ल
बताएँ क्या तुम्हें ख़ून-ए-तमन्ना रोज़ होता है
मियाँ छलनी ग़रीबों का कलेजा रोज़ होता है
करीम दरवेश
ग़ज़ल
ज़ख़्म-ए-दिल और हरा ख़ून-ए-तमन्ना से हुआ
तिश्नगी का मिरी आग़ाज़ ही दरिया से हुआ