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ग़ज़ल
खींच ली किस ने तनाब-ए-ख़ेमा-ए-सिदक़-ओ-सफ़ा
कौन है इस दश्त-ए-ग़म में बे-हुनर होता हुआ
प्रेम कुमार नज़र
ग़ज़ल
ये तमाम सब्ज़ा-ए-आब-जू ये तमाम ख़ेमा-ए-रंग-ओ-बू
तिरे जिस ख़याल का अक्स हैं वो ख़याल कर दे अता मुझे
हसन नईम
ग़ज़ल
क्या रोऊँ ख़ीरा-चश्मी-ए-बख़्त-ए-सियाह को
वाँ शग़्ल-ए-सुर्मा है अभी याँ सैल ढल गया