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ग़ज़ल
वो बहुत दूर हैं इस बात का ग़म है लेकिन
ये बहुत है वो मिरी ख़ैर-ख़बर रखते हैं
सुमन ढींगरा दुग्गल
ग़ज़ल
इक वस्ल जिस की ख़ैर ख़बर ही नहीं मुझे
इक हिज्र जिस की हद है न कोई शुमार है
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
ग़ज़ल
अख़बार क्या कि अपनी भी ख़ैर-ओ-ख़बर से दूर
कुछ रोज़ चल के रहते हैं फ़िक्र-ओ-नज़र से दूर