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ग़ज़ल
दिल में शर्मिंदा हैं एहसास-ए-ख़ता रखते हैं
हम गुनहगार हैं पर ख़ौफ़-ए-ख़ुदा रखते हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
कहीं सुब्ह-ओ-शाम के दरमियाँ कहीं माह-ओ-साल के दरमियाँ
ये मिरे वजूद की सल्तनत है अजब ज़वाल के दरमियाँ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
मा'नी-ए-हर्फ़-ए-ज़वाल उस को भला क्या मालूम
जिस ने सूरज को फ़क़त वक़्त-ए-सहर देखा है
रहबर ताबानी दरियाबादी
ग़ज़ल
आक़िब साबिर
ग़ज़ल
मोहतसिब ख़ौफ़-ए-शिकस्त-ए-साग़र-ए-रंगीं न पूछ
जब कोई ग़ुंचा चटकता है लरज़ जाता हूँ मैं
फ़ैज़ झंझानवी
ग़ज़ल
मैदान-ए-कार-ज़ार में 'अख़्तर' कभी भी मैं
ख़ौफ़-ए-सिनान-ए-ज़िल्ल-ए-इलाही न लाऊँगा