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ग़ज़ल
ख़ौफ़-ए-मीज़ान-ए-क़यामत नहीं मुझ को ऐ दोस्त
तू अगर है मिरे पल्ले में तो डर किस का है
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
टुकड़े टुकड़े हैं जिगर के शीशा-ए-दिल चूर-चूर
ये क़यामत है तुम्हारी चाल की ढाई हुई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
लाला-ए-गुल ने हमारी ख़ाक पर डाला है शोर
क्या क़यामत है मुओं को भी सताती है बहार
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
दिल में शर्मिंदा हैं एहसास-ए-ख़ता रखते हैं
हम गुनहगार हैं पर ख़ौफ़-ए-ख़ुदा रखते हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
ग़फ़लत-मता-ए-कफ़्फ़ा-ए-मीज़ान-ए-अद्ल हूँ
या रब हिसाब-ए-सख़्ती-ए-ख़्वाब-ए-गिराँ न पूछ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कभी अहल-ए-मुहब्बत यूँ न ख़ौफ़-ए-जिस्म-ओ-जाँ करते
अगर शैख़-ओ-बरहमन जश्न-ए-नाक़ूस-ओ-अज़ाँ करते
आजिज़ मातवी
ग़ज़ल
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी है
तर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
नाज़िश सह्सहरामी
ग़ज़ल
न ख़ौफ़-ए-बर्क़ न ख़ौफ़-ए-शरर लगे है मुझे
ख़ुद अपने बाग़ के फूलों से डर लगे है मुझे