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ग़ज़ल
ख़ौफ़-ए-रुस्वाई ग़म-ए-फ़ुर्क़त का दफ़्तर ले गया
'इश्क़ की पस्ती से वो भी शोर-ए-महशर ले गया
बेताब कैफ़ी
ग़ज़ल
सरों पर ख़ौफ़-ए-रुस्वाई की चादर तान लेते हो
तुम्हारे वास्ते रंगों की जब बरसात होती है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
ख़ौफ़-ए-रुस्वाई से घबरा कर जला देती हूँ मैं
चिट्ठियाँ फ़ौरन तिरी पढ़ कर जला देती हूँ मैं
शाहीन अमरोही
ग़ज़ल
तेरी नज़रों ने न जाने कितनी इज़्ज़त बख़्श दी
मुझ को पहले तो कभी भी ख़ौफ़-ए-रुस्वाई न था
कर्रार नूरी
ग़ज़ल
ख़ौफ़-ए-रुस्वाई रहा ख़्वाहिश-ए-क़ुर्बत भी 'हक़ीर'
हम मिला उन से निगाहों को न पाए न छपे
हक़ीर जहानी
ग़ज़ल
मोहब्बत ख़ौफ़-ए-रुस्वाई का बाइ'स बन ही जाती है
तरीक़-ए-इश्क़ में अपनों से पर्दा हो ही जाता है
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ज़बान-ए-मुद्दआ' है जुरअत-ए-इज़हार से क़ासिर
कि इन आँखों में देखा हम ने अक्सर ख़ौफ़-ए-रुस्वाई
हसन शकील मज़हरी
ग़ज़ल
बुल-हवस में भी न था वो बुत भी हरजाई न था
फिर भी हम बहरूपियों को ख़ौफ़-ए-रुस्वाई न था