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ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
क़ब्र में सोएँगे आराम से अब ब'अद-ए-फ़ना
आएगा ख़्वाब-ए-अदम दीदा-ए-बेदार के पास
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
किस ख़ता पर ये उठाना पड़ी रातों की सलीब
हम ने देखा था अभी ख़्वाब-ए-सहर ही कितना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
बेदारियों में आईं नज़र ये तो है मुहाल
मख़्फ़ी हैं वक़्त-ए-ख़्वाब ब-दस्तूर पिंडलियाँ
कल्ब-ए-हुसैन नादिर
ग़ज़ल
शिकस्त-ओ-फ़त्ह का ज़िम्मा नहीं दिल-ए-नादाँ
लड़े हज़ार में ये काम है सिपाही का
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ये जानता हूँ मिरी दस्तरस में कुछ भी नहीं
मगर वो ख़्वाब जो आँखों में पलते रहते हैं