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ग़ज़ल
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
यही मस्लक है मिरा, और यही मेरा मक़ाम
आज तक ख़्वाहिश-ए-मंसब से अलग बैठा हूँ
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
शहर आबादी से ख़ाली हो गए ख़ुश्बू से फूल
और कितनी ख़्वाहिशें हैं जो दिलों में क़ैद हैं
सलीम कौसर
ग़ज़ल
अज्ञात
ग़ज़ल
नोशी गिलानी
ग़ज़ल
ख़्वाहिशें परिंदों से लाख मिलती-जुलती हों
दोस्त पर निकलने में देर कुछ तो लगती है