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ग़ज़ल
ख़्वाहिश-ए-मर्ग है कुछ पाने की मौहूम उम्मीद
ज़िंदगी दे न सकी कुछ तो क़ज़ा क्या देगी
वहीद अख़्तर
ग़ज़ल
ग़ुलाम हुसैन साजिद
ग़ज़ल
ख़्वाहिश-ए-मर्ग सर-ए-रिश्ता-ए-उम्मीद सही
आख़िर उलझे न कहीं वो गिरह-ए-दिल हो कर
अब्दुल हादी वफ़ा
ग़ज़ल
'आशिक़ान-ए-ज़ुल्फ़-ए-जानाँ के 'अजब अतवार हैं
ख़ुद गिरफ़्तार-ए-बला हों ख़्वाहिश-ए-रम भी करें
शकील इबन-ए-शरफ़
ग़ज़ल
कभी तन्हाई की ख़्वाहिश ये होती है कि लोगों का
पयाम अच्छा नहीं लगता सलाम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
उस तरफ़ वो तो इधर हम हैं परेशाँ 'बेबाक'
ख़्वाहिश-ए-दीद किसी तौर न टाली जाए
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
गौरय्यों ने जश्न मनाया मेरे आँगन बारिश का
बैठे बैठे आ गई नींद इसरार था ये किसी ख़्वाहिश का
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
ख़्वाहिश-ए-मर्ग दर-ए-यार-ए-तमन्ना ही सही
सर मगर दोश पे हम को भी गिराँ-बार मिले