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ग़ज़ल
हदीस-ए-बादा-ओ-मीना-ओ-जाम आती नहीं मुझ को
न कर ख़ारा-शग़ाफ़ों से तक़ाज़ा शीशा-साज़ी का
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
यही शैख़-ए-हरम है जो चुरा कर बेच खाता है
गलीम-ए-बूज़र ओ दलक़-ए-उवेस ओ चादर-ए-ज़हरा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ब-सख़्ती-हा-ए-क़ैद-ए-ज़िंदगी मा'लूम आज़ादी
शरर भी सैद-ए-दाम-ए-रिश्ता-ए-रग-हा-ए-ख़ारा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
न शग़्ल-ए-ख़ारा-तराशी न कारोबार-ए-जुनूँ
मैं कोह-ओ-दश्त में फ़र्याद-ओ-नाला क्या करता