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ग़ज़ल
उसे यक़ीं है बे-ईमानी बिन वो बाज़ी जीतेगा
अच्छा इंसाँ है पर अभी खिलाड़ी कच्चा लगता है
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
है क़िस्मत उस खिलाड़ी सी मिरी मैदान-ए-उल्फ़त में
जिसे मौक़ा तो मिलता है मगर खाता नहीं खुलता