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ग़ज़ल
मेरा सफ़र मिरा ही था उठते किसी के क्या क़दम
अपने लिए था खोजना अपना ही नक़्श-ए-पा मुझे
यासमीन हबीब
ग़ज़ल
उसे रेत रेत में खोजना उसे लहर लहर में ढूँढना
कोई शहद सा तिरा अहद था इन्ही साहिलों पे लिखा हुआ
क़य्यूम ताहिर
ग़ज़ल
खोने और पाने का जीवन नाम रखा है हर कोई जाने
उस का भेद कोई न देखा क्या पाना क्या खोना होगा
मीराजी
ग़ज़ल
कभी पा के तुझ को खोना कभी खो के तुझ को पाना
ये जनम जनम का रिश्ता तिरे मेरे दरमियाँ है
बशीर बद्र
ग़ज़ल
तिरे होंटों के सहरा में तिरी आँखों के जंगल में
जो अब तक पा चुका हूँ उस को खोना चाहता हूँ मैं
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
ऐसी यादों में घिरे हैं जिन से कुछ हासिल नहीं
और कितना वक़्त उन यादों में खोना है अभी