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ग़ज़ल
फ़रिश्तो तुम कहाँ तक नामा-ए-आमाल देखोगे
चलो ये नेकियाँ गिन लो कि गठरी खोल दी हम ने
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
जवाब इस का सही देगा कोई तो इस को खोलूँगा
बना कर एक गठरी मैं ने रखी है सवालों की
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
मैं अपने इरादों की गठरी उठाए कहीं जा न पाया
हमेशा ये धड़का रहा महफ़िल-ए-दोस्ताँ खो न जाए
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
सर पर ताज की सूरत धर दी उस ने ईंधन की गठरी
इश्क़ ने कैसे ख़ुश-क़िस्मत को शाह से लकड़हारा किया
सऊद उस्मानी
ग़ज़ल
समझ रहा है तू जिस को अपनी ख़ुशी की गठरी
नहीं हैं उस में ख़ुशी उसे तू उतार दुख हैं
सिद्धार्थ साज़
ग़ज़ल
सूरज के पापों की गठरी सर पर लादे थकी थकी सी
ख़ामोशी से मुँह लटकाए चल देती है पैदल शाम