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ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
अजीब लोग हैं काग़ज़ की कश्तियाँ गढ़ के
समुंदरों की बला-ख़ेज़ियों पे हँसते हैं
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
मुँह से बात निकलते ही सौ गढ़ लेंगे अफ़्साने लोग
बैठे-बैठे बुन लेते हैं कैसे ताने-बाने लोग
रईस रामपुरी
ग़ज़ल
अगर आहों से अपनी कोई मिस्रा गढ़ भी लेते हैं
तो अश्कों से गिरह उस पर लगाते हैं ग़ज़ल वाले