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ग़ज़ल
बादल गरजा बिजली चमकी रोई शबनम फूल हँसे
मुर्ग़-ए-सहर को हिज्र की शब के अफ़्साने दोहराने दो
सफ़ी लखनवी
ग़ज़ल
हम ने माना बस्ती बस्ती आज 'असर' का चर्चा है
उस बादल का ज़िक्र न कीजे जो गरजा वो बरसा क्या
सादुल्लाह खां असर मल्कापुरी
ग़ज़ल
उरूस-ए-मंज़िल-ए-मक़्सूद मिल ही जाएगी इक दिन
यूँही चंदे रहा गरजा वो पैमा कारवाँ अपना