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ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
बड़े लोगों के ऊँचे बद-नुमा और सर्द महलों को
ग़रीब आँखों से तकता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
वसी शाह
ग़ज़ल
ये भी क्या कम है ग़रीब-उल-वतनी में कि 'फ़राज़'
हम को बे-मेहरी-ए-अर्बाब-ए-वतन याद नहीं