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ग़ज़ल
जिस का अमल है बे-ग़रज़ उस की जज़ा कुछ और है
हूर ओ ख़ियाम से गुज़र बादा-ओ-जाम से गुज़र
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दोस्ती की जब दुहाई दी तो शर्क़-ओ-ग़र्ब से
हाथ में पत्थर लिए यारों का लश्कर आ गया
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
निकला हूँ शहर-ए-ख़्वाब से ऐसे अजीब हाल में
ग़र्ब मिरे जुनूब में शर्क़ मिरे शुमाल में
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
ग़ज़ल
ग़ौग़ा है शर्क़ ओ ग़र्ब ओ जुनूब ओ शुमाल में
फ़ित्ने जगा गई तिरी रफ़्तार हर तरफ़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
क्यूँ मिटो नक़्श-ए-क़दम साँ किसी रफ़्तार पे तुम
बैठे बिठलाए ग़रज़ क्या है कि इक हश्र उठाओ
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
नदीम सिरसीवी
ग़ज़ल
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
फ़ाएदा क्या है अगर शर्क़ से ता-ग़र्ब फिरे
राह-रौ वे हैं जो हस्ती से सफ़र करते हैं