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ग़ज़ल
गुज़रना है मुझे कितने ग़ुबार-आलूद रस्तों से
सो अपनी आँख में थोड़ा सा पानी साथ रखता हूँ
आफ़ताब हुसैन
ग़ज़ल
निशाँ देना है मैं ने कुछ ग़ुबार-आलूद सम्तों का
कोई काफ़ी पुराना राज़ तश्त-अज़-बाम करना है
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
क्या तिरी तलवार भी मुझ से ग़ुबार-आलूद थी
ख़ून-ए-दिल का रंग क्यूँ ऐ तेग़-ज़न मैला हुआ
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
मतला'-ए-हस्ती ग़ुबार-आलूद था क्यों साफ़ है
दिल मुकर्रर कह रहा चश्म-ए-करम होने को है
अब्दुल्लाह साक़िब
ग़ज़ल
तू महफ़िल में नहीं शामिल बता 'राही' कहाँ है तू
ग़ुबार-आलूद से इस ताक़-ए-निस्याँ पर वहीं हूँ मैं
राही इतालवी
ग़ज़ल
फ़ज़ा होती ग़ुबार-आलूदा सूरज डूबता होता
ये नज़्ज़ारा भी दिलकश था अगर मैं थक गया होता
शहराम सर्मदी
ग़ज़ल
फ़साद-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र हासिल-ए-तमाशा देख
सवार-ए-मरकब-ए-दुनिया ग़ुबार-ए-दुनिया देख