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ग़ज़ल
बड़ी दिलचस्पियों से सुब्ह-ए-शाम-ए-ज़िंदगी होगी
मैं देखूँगा उन्हें और सारी दुनिया देखती होगी
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
इतनी क़ीमत-ए-शाम-ए-सफ़र दूँ ये नहीं होगा
अपने चराग़ को ख़ुद गुल कर दूँ ये नहीं होगा
महशर बदायुनी
ग़ज़ल
ज़वाल-ए-शाम-ए-हिज्राँ का इशारा देखता हूँ मैं
चराग़ों के बदन को पारा-पारा देखता हूँ मैं
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
सवाद-ए-शाम-ए-ग़म में यूँ तो देर तक जला चराग़
न जाने क्यूँ थका थका उदास उदास था चराग़
नाज़िर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
सवाद-ए-शाम-ए-सफ़र का मलाल कुछ भी नहीं
करूँ मैं अर्ज़ भी क्या अर्ज़-ए-हाल कुछ भी नहीं
आरिफ़ कुकरावी
ग़ज़ल
किया जो ए'तिबार उन पर मरीज़-ए-शाम-ए-हिज्राँ ने
ठण्डाई में धतूरा दे दिया ईसा-ए-दौराँ ने
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
न मलाल-ए-हिज्र न मुंतज़िर हैं हवा-ए-शाम-ए-विसाल के
हम असीर अपनी ही ज़ात के किसी ख़्वाब के न ख़याल के
असलम महमूद
ग़ज़ल
पस-ए-शाम-ए-अलम किसी महर-ए-निगाह को देखते थे
वो लोग कहाँ मिरे हाल-ए-तबाह को देखते थे
मोहम्मद ख़ालिद
ग़ज़ल
ख़लिश दिल की रफ़ीक़-ए-शाम-ए-तन्हाई भी होती है
मगर जब हद से बढ़ जाती है रुस्वाई भी होती है
तहव्वुर अली ज़ैदी
ग़ज़ल
वो जो उम्र भर में कही गई सर-ए-शाम-ए-हिज्र लिखी गई
वही दास्तान-ए-वफ़ा मिरी मरे होंट किस लिए सी गई
क़ैसर ख़ालिद
ग़ज़ल
नक़ीब-ए-सुब्ह तो थे हम रहीन-ए-शाम-ए-ग़म निकले
बड़े झूटे तिरे वा'दे तिरे क़ौल-ओ-क़सम निकले