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ग़ज़ल
मैं राजा गिध हूँ न दश्त-ज़ादा न मास-ख़ोरा
मैं फिर भी बस्ती के मुर्दा-ख़ोरों में रह चुका हूँ
इमरान राहिब
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शब-ए-ग़म न पूछ कैसे तिरे मुब्तला पे गुज़री
कभी आह भर के गिरना कभी गिर के आह भरना