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ग़ज़ल
शब-ए-ग़म न पूछ कैसे तिरे मुब्तला पे गुज़री
कभी आह भर के गिरना कभी गिर के आह भरना
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
बुलंदी के लिए बस अपनी ही नज़रों से गिरना था
हमारी कम-नसीबी हम में कुछ ग़ैरत ज़ियादा थी
राजेश रेड्डी
ग़ज़ल
'हसन' जब लड़खड़ा कर अपने ही पाँव पे गिरना हो
तो फिर एड़ी पे इतनी देर तक घूमा नहीं करते
हसन अब्बास रज़ा
ग़ज़ल
सफ़र के ब'अद भी मुझ को सफ़र में रहना है
नज़र से गिरना भी गोया ख़बर में रहना है
आदिल रज़ा मंसूरी
ग़ज़ल
बुलंद ओ पस्त दुनिया फ़ैसला करने नहीं देती
कि गिरना चाहता हूँ या सँभलना चाहता हूँ मैं
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
रुख़-ए-रौशन पे ज़ुल्फ़ों का ये गिरना जान-लेवा है
और उस पर ये सितम दिलबर हटाना भूल जाता है
सुहैल सानी
ग़ज़ल
ख़्वाहिश पे मुझे टूट के गिरना नहीं आता
प्यासा हूँ मगर साहिल-ए-दरिया पे खड़ा हूँ
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
अनवर निज़ामी जबल पुरी
ग़ज़ल
बल खा के दोश-ए-नाज़ से गिरना इधर उधर
वो ज़ुल्फ़ और हाए वो काफ़िर अदा-ए-ज़ुल्फ़
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
धोके ने मुझ को इश्क़ में क्या क्या सिखा दिया
गिरना सिखा दिया है सँभलना सिखा दिया