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ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
उस की उम्मत में हूँ मैं मेरे रहें क्यूँ काम बंद
वास्ते जिस शह के 'ग़ालिब' गुम्बद-ए-बे-दर खुला
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
शोर है इस घर के आँगन में 'ज़फ़र' कुछ रोज़ और
गुम्बद-ए-दिल को किसी दिन बे-सदा कर जाऊँगा
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
जो बद-ख़ू तिफ़्ल-ए-अश्क ऐ चश्म-ए-तर हैं देखना इक दिन
घरौंदे की तरह से गुम्बद-ए-चर्ख़-ए-कुहन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
जो दूर निगाहों से सर-ए-अर्श-ए-बरीं है
वो नूर सर-ए-गुम्बद-ए-ख़िज़रा नज़र आया
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
देख रह जाए न तू ख़्वाहिश के गुम्बद में असीर
घर बनाता है तो सब से पहले दरवाज़ा लगा